सांस लेना और निकालना ,हाथ पैरों को हिलाना,शरीर को विभिन्न प्रकार की मुद्राओं से गुजारना ही योग नहीं होता ,बल्कि शरीर के द्वारा परमात्म तत्व आत्मा का अपने अंशी परमात्मा का मिलन कराना भी होता है।शरीर जन्म जन्मांतरों के मल बिक्षेप केआवरण के कारण अपने अंशी परमात्मा से स्वयं को प्रथक महसूस करने लगता है इसके कारण भय रोग शोक अहंकार आदि से ग्रसित हो जाता है।
योग अर्थात मिलऩ शरीर,आत्मा तथा परमात्मा का,इसका वैज्ञानिक तर्क यह है कि मस्तिष्क के अंदर कुछ इस प्रकार की ग्रंथियां होती है जिनमे से शरीर को प्रसन्न तथा स्वस्थ रखने के लिए रसों (हार्मोन्स) का स्राव होता है,यह स्राव संतुलित मात्रा में तभी संभव है जब मस्तिष्क एकांत चित्त होकर परमात्मा का चिंतन जिसे मेडिटेशन कहते है।, इस क्रिया के नियम पूर्वक करने से परम आनंद की अनुभूति होती है इसी अनुभूति से पूरा शरीर पुष्ट होता है इसी क्रिया को योग कहा गया है।
योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण ने श्रीमद भागवत गीता में योग को कई बार अलग अलग तरीके से समझाया है योगिजन उन्हीं सिद्धांतों को अंगीकार करते है और प्रसन्न रहते है ,कामकाजी व्यक्ति पूरे दिन बहुत लोगों से मिलता है अर्थात उनके सम्पर्क में आता है,उनके विचार तथा उनसे निकालने वाली शक्ति चाहे खराब हो या अच्छी मन को प्रभावित करती है ,अतः उस शक्ति को नष्ट करना आवश्यक है,दैनिक योग से उसे इसी प्रकार समाप्त किया जा सकता है जैसे ब्लैक बोर्ड पर लिखी बातों को डस्टर से समाप्त किया जाता है। योग के अभाव में मनोवृत्ति प्रदूषित होती है,और दूषित मनोवृत्ति के कारण शरीर में मनोरोग, उत्पन्न होते है, जिससे सामाजिक विघटन ,इसी नैतिक भ्रंश से राष्ट्र की ऊर्जा का क्षय होता है,क्योंकि व्यक्ति राष्ट्र की सबसे छोटी किन्तु बुनियादी आवश्यकता है।विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार स्वस्थ मनुष्य की परिभाषा में किसी भी व्यक्ति का केबल शारीरिक स्वस्थ होना ही पर्याप्त नहीं माना गया है बल्कि शारीरिक,मानसिक,सामाजिक,आध्यात्मिक स्वस्थ होने पर ही उसे स्वस्थ की श्रेणी में रखा जा सकता है,जबकि लोग शारीरिक बलिष्ठता को ही उत्तम स्वास्थ्य मान लेते है और योग जैसी महत्वपूर्ण क्रियाओं का अभ्यास नहीं करते है।
योग के जनक भगवान शिव हैं, किन्तु जन मानस के कल्याण के लिए योग को महर्षि पतंजलि ने लिखा ब समझाया,योग के द्वारा ब्रह्माण्ड में कहीं भी मानसिक विचरण किया जा सकता है तथा वहां से अद्भुत ब दुर्लभ जानकारियां प्राप्त की जा सकती है इस कथन के पर्याप्त प्रमाण हिन्दू धर्म ग्रंथों में वर्णित है।जिन खगोलीय घटनाओं का पता आज बिज्ञांन उपकरणों के द्वारा लगाता है पूर्व में यह कार्य योग बिधी से किया जाता था।टेलीपैथी योग का ही एक उदाहरण है।
आज पूरा विश्व योग की महत्ता को जान रहा है और इसके माध्यम से न सिर्फ रोग मुक्त होने का प्रयास कर रहा है बल्कि जीवन को सुखमय बनाने की दिशा में कार्य कर रहा है
आज पूरा विश्व कृतज्ञ है भगवान शिव व महर्षि पतंजलि एवं बाबा रामदेव का जिन्होंने योग की पुनर्स्थापना की और सम्पूर्ण विश्व को भूली हुई सनातन धर्म की इस विधि का ज्ञान कराया।
डॉ यू एस गौड़
जिला सह संघ चालक हाथरस