हड़ताल ,न्याय पाने का सही तरीका नही

डॉ यू ऐस गौड
समाज सेवी

हिंसा,हड़ताल, राजीनामा ,समाज में अब आम बात हो गई है।यदि इस पर गंभीरता पूर्वक विचार किया जाय तो कई पहलू उजागर होते है,ज्यादातर संगठन इसलिए बनाए जाते है की समुदाय विशेष पर होने वाले अत्याचारों को रोका जा सके और योजानुसार समाज की सेवा की जा सके किंतु धीरे धीरे ये संगठन राजनीति का शिकार होने लगते है और मुख्य उद्देश्य से भटककर चेहरा चमकने में विश्वास करने लगते है।एक दिन की हड़ताल न सिर्फ समाज का अहित करती है बल्कि देश की प्रगति में भी बाधा उत्पन्न करती है,अति आवश्यक सेवाओं वाले संगठनों को हड़ताल जैसा कदम उठाने से बचना चाहिए।
अप्रिय घटनाओं के पीछे समाज में छुपे कुछ षडयंत्र कारी लोग होते हैं,जो घटनाओं को भयावह रूप देकर अपना उल्लू सीधा करते है जिसका परिणाम यह होता है की समाज और समुदाय के बीच की दरार और गहरी हो जाती है।यदि कुछ जिम्मेदार लोग इन घटनाओं का बारीकी से अध्ययन कर जड़ तक पहुंचने का प्रयास करें और उसका समाज की सहायता से समस्या का निराकरण करें तो ऐसी घटनाओंकी पुनरावृत्ति पर रोक लग सकती है।
वर्तमान की घटना का यदि स्मरण करे की डा के साथ हुए मानसिक उत्पीड़न का परिणाम एक कुशल और अच्छे चिकित्सक की जान ले गया ,यह बात निर्विवाद सत्य है कि कोई चिकित्सक रोगी की जान लेने के इरादे से काम नहीं करता हैकिंतु फिर भी बीमारी की गंभीरता,या उसको ठीक करने की दिशा में उठाए गए कदम पर्याप्त न होने के कारण चाहते हुए भी रोगी को नही बचा पाते,इसका अर्थ यह बिल्कुल नही की बचाने का प्रयास नहीं किया गया।
समाज को भी किसी के बहकावे न आकर स्व विवेक से कदम उठाने चाहिए क्योंकि सलाह कार तो सलाह देकर साफ बच जाते है किंतु पीड़ित व्यक्ति सभी प्रकार के नुकसान सहन करता है।

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