मृदा के सूक्ष्म मित्र जीवो के प्रति सुरक्षित है नैनो उर्वरक : डॉ जगदीश मिश्र

हाथरस । विकास खण्ड हाथरस के सभागार में इफको द्वारा सहकारी गोष्ठी का आयोजन कप्तान सिंह ठेनुआ महामंत्री बृज क्षेत्र भारतीय जनता पार्टी ओ बी सी की अध्यक्षता मे किया गया। कार्यक्रम मे मुख्य अतिथि रामकुमार वर्मा उपाध्यक्ष जिला सहकारी बैंक लि0 अलीगढ रहे। विशिष्ट अतिथियों मे भूदेव सिहं ब्लॉक प्रमुख, कप्तान सिहं चाहर, संजीव पाण्डे रहे।
कप्तान सिंह ठेनुआ तथा रामकुमार वर्मा ने अपने संबोधन में बताया कि हमारी सरकार कृषि लागत को कम करने तथा उत्पादन बढ़ाने हेतु कृषि अनुसंधान पर विशेष ध्यान दे रही है, जिसके तहत वैज्ञानिकों द्वारा नैनो यूरिया तथा नैनो डीएपी की खोज की गई। नैनो उर्वरक से कृषि की अर्थव्यवस्था मजबूत होगी।
गोष्ठी के मुख्य वक्ता डॉक्टर जगदीश मिश्र कृषि विज्ञान केंद्र हाथरस टिकाऊ खेती पर चर्चा करते हुए विस्तार से बताया कि नैनो उर्वरक मृदा के सूक्ष्म मित्र जीवो के प्रति सुरक्षित है। आगे बताया कि नैनो डीएपी तरल को बीज उपचार, जड़ व कंद उपचार एवं फसल पर स्प्रे मे प्रयोग किया जाता है। बीज उपचार के लिए पांच मिलीलीटर नैनो डीएपी तरल को प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करें। इसके लगभग आधा घंटा बाद बीज की बुवाई करें। आलू आदि कंद उपचार के लिए पांच मिलीलीटर नैनो डीएपी प्रति लीटर पानी के घोल का स्प्रे कंद पर करें। धान आदि रोपाई वाली फसलों के लिए भी पांच मिलीलीटर नै डी ए पी की मात्रा को प्रति लीटर पानी के घोल में जड़ों को आधा घंटे तक डुबोने के बाद रोपाई करें। नैनो उर्वरको को रोपाई के 20 दिन बाद खड़ी फसल पर चार मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में नैनो डीएपी तरल का स्प्रे करे। स्प्रे मे 15 लीटर की टंकी में ढ़ाई ढक्कन नैनो तरल उर्वरक लगेगी। जबकि 25 लीटर वाली टंकी में चार ढक्कन नैनो तरल उर्वरक का प्रयोग किया जाता है। दानेदार डीएपी की मात्रा को 50 प्रतिशत कम किया जा सकता है। नैनो उर्वरको का प्रयोग तरल सागरिका, जल विलय उर्वरक, कीटनाशक, फंजीसाइड व खरपतवार नाशी के साथ मिलाकर किया जा सकता है।
नैनो उर्वरको के प्रयोग से उपज एवं उत्पाद की गुणवत्ता बढ़ती है। उर्वरक की लागत कम हो जाती है। खड़ी फसल में फास्फोरस की कमी दूर होती है। नैनो तरल उर्वरको की उपयोग क्षमता 90 प्रतिशत से अधिक है। भंडारण एवं परिवहन में सुविधा होती है। पर्यावरण हितैषी है। मिट्टी को प्रदूषित नहीं करता है। दानेदार डीएपी का मात्र 15 से 20 प्रतिशत भाग ही फसल उपयोग कर पाती है। जैव उर्वरक-कंसोटिया के प्रयोग से कम लागत मे अधिक उपज एवं सूक्ष्म जीवाणुओं के कारण टिकाऊ खेती में मददगार है। संचालन आई पी मलिक प्रबन्धक इफ़को हाथरस द्वारा किया गया। गोष्ठी को अपर जिला सहकारी अधिकारी मोर मुकुट सुमन तथा सहायक विकास अधिकारी मुकेश कुमार द्वारा भी संबोधित किया गया।
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