डा यू एस गौड़
ज्यादातर लोग व्यवहार के परिवर्तन पर ध्यान नहीं देते उसे सामान्य या परिस्थिति जन्य मानकर ढोते रहते हैं ,जबकि सच्चाई यह है की किसी भी तरह का व्यावहारिक परिवर्तन यदि स्थाई है या अधिक दिन तक चलता है तो वह बीमारी है और उसका उपचार भी आवश्यक है।
मानसिक बीमारियों के लक्षण बहुत बार ऐसे पाए जाते है जिन्हे रोगी तो क्या चिकित्सक भी नही पहचान पाते और लक्षणों के आधार पर दवा देते रहते है।ज्यादातर लोग घबराहट,बैचेनी,नींद न आने को ही मानसिक तनाव मानते है जबकि बार बार हाथ धोना,बार बार शौच जाना,जेब में रखी वस्तुओं को समय पर नही निकाल पाना, डर,आशंकित होना,अपने मन में ही कल्पना कर लेना,अपने अंदर अत्यधिक ऊर्जा अथवा ज्ञान का अनुभव करना,अकारण क्रोध करना,अकारण रोना या हंसना,शक करना ,स्वयं को घातक बीमारी से ग्रस्त समझना आदि आदि भी मानसिक बिमारिया ही है,जिनका उपचार यदि समय से न किया जाय तो परिवार,के अन्य लोगों के भी प्रभावित होने का डर रहता है।
इस प्रकार के मानसिक रोगियों को दो प्रकार के चिकित्सक देखते और चिकित्सा करते है। एक बिना दवा के काउंसलिंग करके उनमें व्यवहार परिवर्तन करते है दूसरे प्रकार के चिकित्सक दवाओं का प्रयोग कर रोगियों को ठीक करते है दोनो प्रकार के चिकत्सकों का अपना अपना महत्व है।लक्षणों के शुरू होने पर काउंसलिंग से काम चल जाता है किंतु लक्षणों के तीव्र होने पर दवा आवश्यक हो जाती है।
मानसिक रोगों में होमियोपैथिक दवाएं भी अच्छा प्रभाव दिखाती है,जिनका प्रयोग अच्छे चिकित्सक की देख रैख में करना चाहिए,होमियोपैथिक चिकित्सा से मानसिक लक्षणों के साथ साथ चल रहीं अन्य बीमारियां भी ठीक हो जाती हैं।
लेखक वरिष्ठ होमियोपैथिक चिकित्सक है