जीवन परमात्मा ने दिया है,लेने का अधिकार भी उसी को
डॉ यू एस गौड़
वरिष्ठ चिकित्सक
नगर सह संघ चालक,आरएसएस, हाथरस
आत्म हत्या यानी स्वयं के प्रयासों द्वारा अपने शरीर को नष्ट करना,यह अबास्था मानसिक अवसाद की स्थिति के शिखर पर पहुंच जाने के कारण होती है।बहुत लोगों का मत है कि यह एक कायराना हरकत है किन्तु यह सच नहीं आत्महत्या न कायराना हरकत है और न बहादुरी की मिशाल,बल्कि एक मानसिक बीमारी हैं जिसमें व्यक्ति उलझ जाता है और उस उलझन का कोई रास्ता नजर नहीं आता तो वह हड़बड़ाहट में इस रास्ते को अपनाता है ।
अतः कहना गलत न होगा कि आत्मघाती उलझे तथा नकारात्मकता से ओतप्रोत होते है भले ही वो चिकित्सक,नेता,अभिनेता,पत्रकार,यहां तक कि मनोरंजन करने वाले अथवा सामाजिक कार्यकर्ता ही क्यों न हो,क्योंकि दूसरों को ज्ञान बांटना और स्वयं में ढालना दोनों में काफी अंतर होता है।
शोधकर्ताओं ने पाया है कि मनुष्य के अंदर स्वयं को प्रभावशाली बनाने के एक तीव्र इक्छा होती है । श्रीमद भागवत गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है कि संसार में मनुष्य जो चाहता है उसे मिल सकता है किन्तु सबके परिणाम निश्चित है।
अतः जिस प्रकार कार में अधिकतम गति 180 हो तो क्या उसे 180 पर ही चलाना चाहिए , चलाने के लिए ड्राईवर स्वतंत्र भी है किन्तु परिणामों के लिए भी उसे तैयार रहना चाहिए।रामायण में संत तुलसी दास जी ने लिखा है हानि,लाभ,जीवन मरण यश अपयश बिधि हाथ।अर्थात कुछ चीजों में हमें कर्म करते हुए भी ईश्वर अथवा भाग्य के भरोसे रहना चाहिए परीक्षा देने के उपरांत भी छात्रा परिणाम का इंतजार करते हैं ,परिणाम उनकेे हाथ में नहीं है ना ।ठीक वैसे ही परिणाम की चिंता न करें।
परिस्थिति कभी मनुष्य के साथ नहीं आती उनका निर्माता बह स्वयं है अतः परिस्थिति कितनी भी खराब हों निर्माता से बड़ी नहीं हो सकती ,और उनसे बचने का रास्ता आत्महत्या कदापि नहीं।
यदि किसी मनुष्य के मस्तिष्क में जाने अंजाने ऐसे विचार आ जाय तो उसे गंभीरता से लें इस विचार को मानसिक रोग के दस्तक की आहट समझ कर निम्न प्रयास शुरू कर दें।
1.अपने विचार के विषय में अपने मित्र,भाई बहिन माता पिता गुरु जो भी आपको सकारात्मक ऊर्जा देता हो उसे आवश्य बताए।
2. ध्यान लगा कर में को एकाग्र करें,रामायण श्रीम्भगवद्गीता,धार्मिक पुस्तकें,पढ़ें या धर्म गुरुओं के बि चार सुने।
3.विचारों में तीव्रता आने पर अपने निजी चिकित्सक अथवा मनोचिकित्सक से तुरंत सम्पर्क करें।
5,पानी जूस प्रचुर मात्रा में पीए,खराब स्थिति अल्पकालीन होती है ऐसा विचार मन में स्थापित करते रहें।
6.घर में बने पूजा स्थल में भजन,कीर्तन,पूजा पाठ में ज्यादा समय देने की कोशिश करे।
7 नकारात्मक ऊर्जा जहां से आपको मिल रही है उस स्त्रोत का पता करके उस पर विराम लगाए। जैसे कोई व्यक्ति जो फोन के। द्वारा वार्ता के द्वारा आपके मन को खराब करे उससे बात न करे ।
8 स्वयं को ब्यस्त रखने प्रयास करें। नीद पूरी लें।