कुपोषण को दूर करने के लिए व्यवहार परिवर्तन जरूरी : डीके सिंह

आईसीडीएस ने सीफार के सहयोग से आयोजित की मीडिया संवेदीकरण कार्यशाला
हाथरस। कुपोषण को दूर करने के लिए व्यवहार परिवर्तन सबसे जरूरी है। जब तक व्यवहार परिवर्तन नहीं होगा तब तक समाज में बदलाव नहीं आयेगा, उक्त बातें जिला कार्यक्रम अधिकारी (डीपीओ) डी.के. सिंह ने कही। वह रविवार को बाल विकास सेवा एवं पुष्टाहार विभाग (आईसीडीएस) के तत्वावधान में सेन्टर फॉर एडवोकेसी एंड रिसर्च (सीफार) के सहयोग से आयोजित मीडिया संवेदीकरण कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे।
शहर के एक होटल में आयोजित कार्यशाला में जिला कार्यक्रम अधिकारी डी.के. सिंह ने कहा आज भी लोग रुढ़िवादिता नहीं छोड़ पा रहे हैं। उन्होंने उदाहरण के रूप में बताया अब भी घरों में बच्चा पैदा होने पर उसे शहद चटाया जाता है। “यह एक परम्परा सी चली आ रही है। यह एकदम गलत है। बच्चे को जन्म के एक घंटे के भीतर मां का दूध पिलाना बहुत जरूरी है। मां का दूध पीने से बच्चे को वह सब तत्व मिल जाते हैं जो उसके विकास के लिए जरूरी हैं और इसी दूध से उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित होती है।”
उन्होंने कहा जानते सब हैं पर अमल बहुत कम लोग करते हैं। उन्होंने जागरूकता लाने के मामले में मीडिया की भूमिका को बहुत अहम बताया। उन्होंने आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का महत्व भी बताया।
जिला महिला चिकित्सालय के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ रूपेंद्र गोयल बताया- “छोटे बच्चे को पानी नहीं पिलाना चाहिए। अपने आसपास यह सुनश्चित करें कि महिलाएं छह माह तक बच्चे को पानी न पिलायें। यह हमारा दायित्व है कि कम से कम अपने इलाके में तो इस बारे में लोगों को जागरूक करें। इसमें नारे बहुत कारगर साबित होते हैं। सरकार इस तरह के कार्यक्रम कर रही है। उसमें सहयोग करें। हमारे शिक्षित होने का तभी अर्थ है जब हम इन जानकारियों को अपने जीवन मे उतारें। यह जानकारियां होनी चाहिए कि कितनी आयु पर कितनी कैलोरी की जरूरत होती है।”
जिला स्वास्थ्य शिक्षा सूचना अधिकारी डा. चतुर सिंह ने सेंटर फार एडवोकेसी एडं रिसर्च की प्रशंसा करते हुए कहा कि यह संस्था हेल्थ के क्षेत्र में सराहनीय कार्य कर रही है। मीडिया योजनाओं को घरों में पहुंचाने का अच्छा माध्यम है। उन्होंने बताया गांवों में ही नहीं बल्कि कामकाजी महिलाओं के बच्चे भी कुपोषित होते हैं क्योंकि वह काम के दबाव में सही समय पर बच्चे को स्तनपान नहीं करा पाती हैं। उन्होंने कहा बच्चे को कुपोषण से बचाने के लिए किशोरी पर ध्यान देना होगा क्योंकि कल को वही मां बनेगी। कुपोषण रोकने के लिए परिवार नियोजन पर भी ध्यान देना जरूरी है, उन्होंने कहा।
महिला कल्याण अधिकारी मोनिका गौतम ने कहा स्वस्थ पीढ़ी के लिए स्वस्थ नारी का होना आवश्यक है। उन्होंने स्वास्थ्य से जुड़ी जानकारियों के लिए छोटी-छोटी कार्यशाला आयोजित किये जाने पर बल दिया।
बाल विकास परियोजना अधिकारी (सीडीपीओ) धीरेन्द्र ने कहा स्वास्थ्य का मतलब शारीरिक ही नहीं मानसिक स्वास्थ्य भी है।
सीडीपीओ राहुल वर्मा ने कहा महिलाएं अधिक जागरूक नहीं होती, उनको जागरूक करने की जरूरत है। पोषण अभियान का मकसद बच्चों को कुपोषण का शिकार होने से बचाना है। शुरू के एक हज़ार दिन बच्चों के मानसिक, शारीरिक विकास के लिए जरूरी हैं। अति आहार भी कुपोषण की श्रेणी में आता है।
सीडीपीओ धर्मेंद्र कुलश्रेष्ठ ने कहा सीफार ने पोषण जैसे विषय पर चर्चा की यह सराहनीय है। तीन बिन्दु -स्वास्थ्य, संचार और सुदृढ़ीकरण किसी भी योजना के आधार होते हैं। बीमारियों का न होना स्वस्थ होना नहीं होता बल्कि शारीरिक मानसिक और सामाजिक स्तर पर मजबूती ही स्वास्थ्य कहलाता है।
आंगनबाड़ी कार्यकर्ता रेनू रावत ने अपने अनुभवों को मीडिया के सामने साझा किया। उन्होंने बताया- “हम जनता के बीच जानकारी देते हैं, जब तक वह लोगों को नहीं समझा, लेती मानती नहीं हैं।” उन्होंने बताया वह विभिन्न तरीकों से अपनी बात समझाती हैं और मनवाती भी हैं।
लाभार्थी सपना मिश्रा ने बताया- विभिन्न योजनाओं की जानकारी आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं द्वारा
समय-समय पर दी जाती है जिनका अनुपालन किया जाता है। कार्यक्रम में बाल विकास सेवा एवं पुष्टाहार विभाग (आईसीडीएस) के अधिकारी-कर्मचारी मौजूद रहे।

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