सनातन के सार्थी : भक्ति की श्रीकृष्ण की लिख दिये लाखों भजन

– सदगृहस्थ संत की सादगी को आज भी प्रणाम करते हैं लोग
– घर चलाया अकाउंटेंसी से और मन चलाया श्री कृष्ण की भक्ति में
– ब्रजद्वार के इस भक्त की आज भी चर्चा होती है सनातनियों में

हाथरस। कलम से गणित के माहिर बने भैयाजी ने अक्षरों से शब्द और शब्दों से पदों में लाखों भजन लिख डाले। भले ही वह आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन आज भी श्रद्धालुजन उन्हें सनातन का सार्थी मानते हैं।
जी हाँ i हम ब्रज की द्वारा देहरी कहे जाने वाली हींग की नगरी हाथरस की श्रद्धा की सौगात को लेकर बात कर रहे हैं। इस कड़ी में हम पहुंचे हैं शहर के दिल्ली बाला मोहल्ला में। जहां सनातन के सार्थी के रूप में 16 अगस्त, 1947 को पं० जगन्नाथ प्रसाद जी के यहां पुत्र रुप में जन्मे थे पं० भिक्कोमल शर्मा (भैयाजी)। कृष्ण भक्ति में रमे भैयाजी से 8 वर्ष की अल्प आयु में ही पिता का साया सिर से हट गया था। जिम्मेदारी का बोझ और कठिन वक्त होने के बाद भी उनके सिर से कृष्ण भक्ति का खुमार कम नहीं हुआ। घर चलाने के लिए उन्होंने रोकड़िया की विद्या सीखी तो भक्ति के संचार में उनकी लगाता भजन गायकी और भजन लेखन भी जारी रहा। वह रोज रुई की मंडी स्थित मंदिर ठा० श्री कन्हैलाल जी महाराज में जाकर भजन सुनाते। उनकी पद्द भक्ति ने ऐसा रंग पकड़ा कि वह काफी दूर-दूर तक भजन गाने के लिए जाने लगे। इसी दौरान उनका विवाह मथुरा निवासी स्व० पं० प्यारेलाल शर्मा की सुपुत्री गीता देवी से हुआ। जिनसे दो पुत्र नवीन व कन्हैया शर्मा त पुत्री किरन का जन्म हुआ। भैयाजी ने भक्ति के साथ संघर्ष भरे जीवन को अप्रैल, 2024 को विराम कर दिया और बैंकुंठवासी हो गये। उनकी धर्मपत्नी ने बताया कि भैयाजी ने अपने हस्थ लिखित करीब सवालाख भवन छोड़े हैं। जिसमें से परिजनों ने कुछ भजन लेखन पुस्तकें भी छपवा कर बांटी हैं।

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