डॉ यू एस गौड
जिला संघचालक
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, हाथरस
हाथरस। शरद पूर्णिमा का पर्व हिन्दुओं के लिए एक धार्मिक आयोजन ही नहीं , बल्कि इसका महत्व स्वास्थ्य, और संपन्नता के साथ भी जुड़ा है । सामाजिक समृद्धि और आध्यात्मिक ऊर्जा का पर्व शरद पूर्णिमा की रात हमें प्रकृति की दिव्यता और चंद्र देव के आशीर्वाद का अनुभव करने का अवसर देती है, साथ ही मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त कर जीवन में सुख-समृद्धि लाने का संदेश भी इसी पर्व से मिलता है , यह पावन पर्व भारतीय संस्कृति की अनूठी विरासत और श्रद्धा का प्रतीक है।
अमृत वर्षा की रात की इस रात्रि में चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से पूर्ण होता है और उसकी किरणों से अमृत की वर्षा होती है। मान्यताओं के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान इसी दिन देवी लक्ष्मी प्रकट हुई थीं। इसलिए इसे लक्ष्मी प्रकटोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। यह भी माना जाता है कि मां लक्ष्मी पूर्णिमा की रात में पृथ्वी पर विचरण करती हैं और जो भक्त जागरण कर उनकी पूजा करते हैं, उनके घर में स्थायी रूप से निवास करती हैं और उन्हें धन, सौभाग्य और समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं।
भगवान श्री कृष्ण ने गोपियों के साथ महारास लीला का आरंभ इसी रात किया था। यह प्रेम, भक्ति और आत्मा के परमात्मा से मिलन का प्रतीक है, जिसके कारण इसे रास पूर्णिमा भी कहा जाता है। शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा की रोशनी में विशेष औषधीय गुण होते हैं और ये किरणें अमृत बरसाती हैं, जो शारीरिक रोगों को दूर करने और मन को शांति देने में सहायक होती हैं
इस दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व है। सफेद वस्त्र, चावल, शक्कर या दूध जैसी चंद्रमा से संबंधित वस्तुओं का दान करने से कुंडली में चंद्रमा मजबूत होता है और जीवन में मानसिक शांति आती है।
संघ इस पर्व को सामाजिक समरसता के रूप में मनाता है इस दिन शाखाओं पर खेल,भजन कीर्तन,और साधना के कार्यक्रम किए जाते है और सभी स्वयं सेवक एक दूसरे के साथ हंसी ठिठोली करते हुए जाति पाती से मुक्त होकर खीर का प्रसाद खाते और खिलाते हैं।