विद्यालयों के एकीकरण पर माननीय न्यायालय का निर्णय – एक स्वागतयोग्य एवं दूरदर्शी पहल

हाथरस। मा० सदस्य, उत्तर प्रदेश राज्य महिला आयोग, श्रीमती रेनू गौड जी ने अवगत कराया है कि हाल ही में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ द्वारा उत्तर प्रदेश सरकार की विद्यालय एकीकरण नीति को वैध घोषित किया गया है। न्यायालय ने सीतापुर के 51 छात्रों द्वारा दायर याचिका को अस्वीकार करते हुए सरकार की मंशा को सार्थक और विधिसम्मत ठहराया है। इस निर्णय के पश्चात राज्य के लगभग 5,000 प्राथमिक एवं जूनियर विद्यालयों के मर्जर का मार्ग प्रशस्त हो गया है।
याचिकाकर्ताओं ने जहां इस नीति को छात्रों के शैक्षणिक हितों के प्रतिकूल बताया, वहीं माननीय न्यायालय ने स्पष्ट किया कि सरकार की नीति दोषरहित है तथा इसका उद्देश्य शैक्षणिक संसाधनों का समुचित उपयोग सुनिश्चित करना है। यह निर्णय न केवल प्रशासनिक दक्षता को बढ़ावा देगा, अपितु शिक्षा की गुणवत्ता में भी महत्वपूर्ण सुधार लाएगा।
एक उत्तरदायी नागरिक के नाते हम सभी का यह नैतिक दायित्व बनता है कि किसी भी नीति या निर्णय के विरुद्ध असहमति की स्थिति में संवैधानिक साधनों का ही चयन करें।
इस सन्दर्भ में मैं स्पष्ट रूप से यह कहना चाहती हूँ कि—
❝जब तक न्यायालय में लंबित वादों का निर्णय नहीं आ जाता, तब तक सार्वजनिक स्थलों पर प्रदर्शन, धरना अथवा अनुशासनहीन आचरण उचित नहीं कहा जा सकता।❞
ऐसे कृत्य न केवल शासन-प्रशासन की कार्यवाही में अवरोध उत्पन्न करते हैं, बल्कि सामान्य नागरिकों, विशेषकर महिलाओं, बच्चों एवं वृद्धों को मानसिक क्लेश का भी कारण बनते हैं।
लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ-साथ कर्तव्यनिष्ठा का संतुलन बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि न्यायपालिका ही अंतिम निर्णय का सर्वोच्च स्रोत है, और जब न्यायालय द्वारा किसी नीति को विधिसम्मत घोषित कर दिया गया है, तो उसका सम्मान करना हम सभी का कर्तव्य है।
अतः मेरी सभी जागरूक नागरिकों से अपील है कि वे अफवाहों से दूर रहें, न्यायिक प्रक्रिया पर आस्था बनाए रखें और राज्य सरकार की नवाचारपूर्ण योजनाओं को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखें। समाज में विनम्रता, अनुशासन और संवाद ही किसी भी असहमति को विवेकपूर्ण ढंग से हल करने के सशक्त साधन हैं।

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