डा यू एस गौड़
सामाजिक समता विश्लेषक
शिक्षा का सीधा अर्थ बालकों के गुणों का विकास कर समाज,राष्ट्र,और विश्व के कल्याण के लिए उन्हें उपयोगी बनाकर प्रस्तुत करना होता है शिक्षा में ऊंच नीच, जाति,वंश,धर्म आदि का कोई स्थान नहीं बल्कि इन सब से ऊपर उठाने के लिए ही उन्हें प्रशिक्षित किया जाता है।
प्रत्येक राष्ट्र अपने नागरिकों के श्रेष्ठ चिंतन के साथ सर्वांगीण विकास की अपेक्षा विद्यालयों से करता है ,विद्यालय का द्वार किसी मंदिर और अध्यापक किसी पुजारी से कम नहीं होते क्योंकि अच्छासंचालन,अच्छी शिक्षा,ही अच्छे वातावरण का निर्माण करता है इन विद्यालयों में सरकारों का हस्तक्षेप भेदभाव रहित शिक्षा प्रदान करने का तो होता है किंतु उनमें भेदभाव उत्पन्न करना कदापि नहीं।
बात यदि विद्यालयों में शिक्षा हेतु आने वाले विद्यार्थियों की वेश भूषा पर बात की जाय तो शिक्षा के मानक और उसकी गुणवत्ता को स्थापित करने में वेश भूषा प्रथम सीडी है,क्योंकि विद्यार्थियों में समता की भावना उत्पन्न होना ही शिक्षा का प्रथम अध्याय है ,यहीं से श्रेष्ठ चिंतन की शुरुआत होती है, यहीं से उनमें एकता की भावना का बीजारोपण होता है।
राष्ट्र की एक शिक्षा नीति, विद्यालयों की निश्चित वेश भूषा शिक्षा ग्रहण करने वालों के लिए एक जैसे नियम भी विद्यालयों का एक अनिवार्य अंग है इसमें किसी भी छात्र की निजता नही चल सकती,बल्कि मेरा मत तो यह भी है कि राष्ट्र के सभी विद्यालयों के लिए एक ही वेश भूषा पर विचार होना चाहिए, समाज में कुछ विघटन और द्वेष फैलाने वाले लोग यदि ऐसा प्रयास कर भी रहे है तो कानून को इस ओर अपना ध्यानाकर्षण कर उन्हे दंडित करना चाहिए,क्योंकि यहां बात राष्ट्र के उत्थान की है,निजी स्वार्थों की नहीं।